(प्रयागराज UP) 09जनवरी,2025.
त्रिवेणी के संगम पर महाकुंभ में काशी के कलाकार भी कला की प्रस्तुतियां देंगे। स्वांग और रास की मंडलियां पेशवाई के समय तरह-तरह के स्वांग रचाएंगी। कहीं अघोरी भस्म की होली खेलेंगे तो कहीं कान्हा गोपियों संग रास रचाएंगे। महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र महाकाल की लीला होगी। इसमें काशी के कलाकारों की टोलियां शामिल होंगी।
तन पर भस्म रमाए भोला खेल रहे हैं होरी…की थीम पर महाकाल और माता पार्वती के स्वरूपों की प्रस्तुतियां पहली बार महाकुंभ का हिस्सा बनेंगी। काशी की शिव बरात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा, मसान की होली और महाशिवरात्रि पर शिव बरात निकालने वाली टोलियां प्रयागराज जाएंगी। इसमें सबसे अधिक मांग महाकाल के स्वरूप की है। प्रयागराज में कई सामाजिक संस्थाओं और अखाड़ों की ओर से काशी की टोलियों को निमंत्रण दिया गया है।
महाकाल की भूमिका निभाने वाले सोनू ने बताया कि भगवान का स्वांग रचाना आसान नहीं होता है। वह तो बचपन से ही इसे देखते आ रहे हैं, अब तो वह खुद महाकाल बनते हैं। 28 साल की अवस्था में महाकाल के स्वरूप ने ही उनको अलग पहचान दिलाई है। 2019 में पहली बार गौरी केदारेश्वर मंदिर में महाकाल का स्वरूप धारण किया था। काला रंग और भभूत उड़ाते हुए महाकाल ने सबके दिल में जो जगह बनाई कि आज वह मेरी पहचान ही बन चुका है।
इसके बाद मसान की होली में मैंने महाकाल का स्वरूप धारण किया। महाकाल की टीम में पार्वती की भूमिका खिड़किया घाट की रहने वाली सपना और खोजवां के रहने वाले 10 युवा अघोरी बनते हैं। सोनू ने बताया कि महाकाल के स्वरूप ने पांच सालों में काशी ही नहीं देश भर में एक अलग पहचान दिलाई। ज्यादातर लोग मुझे महाकाल के रूप से ही पहचानते हैं। मुझे असली चेहरे से बहुत कम लोग पहचानते हैं।
तैयार होने में लगते हैं तीन से चार घंटे:
इंटर तक की शिक्षा और बीएचयू से संगीत में डिप्लोमा कर चुके सोनू ने बताया कि काशी में निकलने वाली रामलीला की शोभायात्रा से उनको स्वांग रचाने की प्रेरणा मिली। महाकाल के रूप में तैयार होने में तीन से चार घंटे लगते हैं और छह से आठ घंटे तक इसी स्वरूप में रहते हैं। सबसे खास बात है कि स्वांग रचाने वाले कलाकार अपना मेकअप भी खुद ही करते हैं। यानी कि कलाकार से लेकर मेकअप आर्टिस्ट की भूमिका हर पात्र खुद निभाता है।
61 हजार रुपये से लेकर सवा लाख तक होती है फीस:
सोनू ने बताया कि काशी में होने वाली शिव बरात, बाबा विश्वनाथ की शोभायात्रा सहित अन्य आयोजनों में 61 हजार रुपये मिल जाते हैं। वहीं जब वह लोग बाहर जाते हैं तो सवा लाख रुपये तक फीस चार्ज करते हैं। अभी तक वह उत्तर प्रदेश के अलावा महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, बिहार, मध्यप्रदेश, उड़ीसा में प्रस्तुतियां दे चुके हैं। हर जगह उनके महाकाल स्वरूप की ही सबसे अधिक मांग रहती है। वर्ष भर में लगभग डेढ़ सौ से दौ सौ कार्यक्रम करते हैं। बनारस में 10 से अधिक टोलियां हैं जो इस तरह का स्वांग रचाते हैं।(साभार एजेंसी)