(देहरादून)04 फरवरी,2024.
दो दिनों से हो रही बारिश और बर्फबारी से ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चोटियां बर्फ से लकदक हैं, चारों तरफ बर्फ ही बर्फ।बर्फबारी ,उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों का अमृत है ,इसी से सराबोर है यहां की प्रकृति, यहां की अनोखी छटा, बर्फबारी यहां जीवन का परम आनंद है।
केदारनाथ में भगवान शंकर ने बर्फ में समाधि लगा ली है। अब उनकी यह तंद्रा चैत्र में टूटेगी। बर्फबारी उत्तराखंड के ऊंचाई वाले पर्वतीय क्षेत्रों का जीवन है। यहां बर्फबारी के बाद तापमान बढ़ जाता है और कोरी ठंड से होने वाली खुर्रा खांसी आदि बीमारियाँ भी मिट जाती है। माघ मास में चार पांच दिनों तक निरंतर होने इस बर्फबारी को उतराखंड में “झौड़ पड़ना” कहा जाता है। इस झौड़ की तैयारियां कार्तिक मास में घास काट कर उ$ले के खुंम लगा कर और लकड़ी के चट्टे लगा कर की जाती है। इन दिनों के लिए घर और गोशाला के आसपास हरे चारे के पेड़ भी रखे जाते हैं ताकि झौड़ में उपयोग किए जा सकें। झौड में पशुओं को गोशाला में ही रखा जाता है बणों में चरने नहीं भेजा जाता है। झौड़ पडने से घरती सरसब्ज अर्थात पानी से पोषित हो जाती है। झौड़ के बाद जब आकाश साफ होता है तो रात को खूब पाला पड़ता है जिससे बर्फ सख्त हो जाती है और कुछ दिनों तक टिकी रहती है। इससे पानी भूमि के भीतर रिसने की प्रक्रिया चलती है और भूगत जीवों व घास की जड़ों को जल मिलता है। एक माह उपरांत वसंत में वह नवजीवन के उल्लास के रूप रूप में प्रकट होता है। अच्छी बर्फबारी से सेब ,नाशपाती, खुमानी, चू$ली, तैड़ू की पैदावार अच्छी होती है।