उत्तराखंड में तैयार हुआ उत्तर भारत का पहला “गोंद गार्डन”

Uttarakhand News

(नैनीताल)08मई,2025.

उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र जैव विविधता के संरक्षण और संवर्धन के लिए जाना जाता है। यहां पर कई तरह के विलुप्त हो रहे पेड़-पौधों के संरक्षण और संवर्धन का काम किया जा रहा है। ऐसे में अनुसंधान केंद्र ने लालकुआं अनुसंधान केंद्र में उत्तर भारत का पहला गोंद प्रजाति के पेड़ पौधों का नर्सरी तैयार किया है। जिससे उत्तराखंड के काश्तकार इन पेड़ पौधों से गोंद संबंधित प्रजातियों की जानकारी हासिल कर गोंद की खेती कर अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत कर सके।

मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि लालकुआं वन अनुसंधान केंद्र में वर्ष 2018 में विलुप्त हो रहे गोंद प्रजातियों के 861 प्राकृतिक गोंद उत्पादन करने वाले पौधों का रोपण किया गया था।जो पेड़ अब लगभग तैयार हो चुके हैं।ऐसे में अब इन पेड़ों से गोंद उत्पादन का काम किया जाएगा। साथ ही इन पेड़ों के संरक्षण का काम भी किया जा रहा है।जिससे कि इन पेड़ों द्वारा उत्पादित बीजों को अन्य नर्सरी और जंगलों में लगाकर अधिक से अधिक गोंद उत्पादित करने वाले पेड़ों को लगाया जा सके।उन्होंने बताया कि वन अनुसंधान का मकसद है कि शोधार्थी और किसान इन पौधों के संबंध में जानकारी हासिल कर इसकी खेती कर आत्मनिर्भर बन सकता है।

उन्होंने बताया कि प्राकृतिक रूप से तैयार गोंद की डिमांड कई औषधियों में की जाती है. गोंद कई खाद्य पदार्थ के प्रयोग में भी लाया जाता है। दवा निर्माता कंपनियों के अलावा पेंट और चिपकाने वाली पदार्थ तैयार करने वाली कंपनियां भी गोंद का प्रयोग करती है।उन्होंने बताया कि अनुसंधान केंद्र में मुख्य रूप से गोंद उत्पादन करने वाले पेड़ बबूल, ढाक, उदाल, कुंभी, झिंगन, बांकली, अकेसिया सेनेगल, आमडा प्रजाति के पौधों को रोपित किया गया है। इन पेड़ों की छाल के माध्यम से गोंद निकालने का काम किया जा रहा है।

उन्होंने बताया कि वन अनुसंधान केंद्र जंगलों में बड़े पैमाने पर गोंद उत्पादित करने वाले पेड़ों को लगाने का भी अभियान चलाने जा रहा है। इसके अलावा किसानों को भी गोंद प्रजाति के पेड़ पौधे लगाने के लिए जागरूक किया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गोंद की कीमत बड़े पैमाने पर की जाती है।ऐसे में काश्तकार गोंद प्रजाति के पेड़ पौधे लगाकर गोंद की खेती कर अच्छी आमदनी कर सकता है(साभार एजेंसी)

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