144 साल बाद महाकुंभ में बन रहा समुद्र मंथन का दुर्लभ संयोग

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(प्रयागराज UP)13जनवरी,2025.

इस बार महाकुंभ बेहद खास है। ग्रहों की स्थिति बेहद दुर्लभ संयोग बना रही है। 144 साल के बाद महाकुंभ में समुद्र मंथन के संयोग बन रहे हैं। बुधादित्य योग, कुंभ योग, श्रवण नक्षत्र के साथ ही सिद्धि योग में त्रिवेणी के तट पर श्रद्धालु महाकुंभ में डुबकी लगाएंगे।

ज्योतिषाचार्य प्रो. ब्रजेंद्र मिश्र ने बताया कि चंद्र एवं बृहस्पति के प्रिय ग्रह बुध मकर राशि में हैं जो बुधादित्य योग बना रहे हैं। कुंंभ योग और राशि परिवर्तन योग इस महाकुंभ को अति विशिष्ट बना रही है। शनि की कुंभ राशि एवं शुक्र तथा बृहस्पति के राशि परिवर्तन की स्थिति का यह संयोग 144 सालों के बाद बन रहा है।

सूर्य, चंद्र और शनि तीनों ग्रह शनि की राशि मकर एवं कुंभ में गोचर कर रहे हैं। यह संयोग देवासुर संग्राम के समय निर्मित हुआ था। असुर गुरु शुक्र उच्च राशि में होकर बृहस्पति की राशि में तथा बृहस्पति शुक्र की राशि में हैं। इसके अलावा श्रवण नक्षत्र सिद्धि योग में सूर्य चंद्र की स्थिति तथा उच्च शुक्र एवं कुंभ राशि के शनि के कारण यह महाकुंभ परम योगकारी होगा।

बृहस्पति के 12 गोचर में चक्र पूरे होने पर लगता है महाकुंभ:

प्रो. ब्रजेंद्र मिश्र ने बताया कि जब देवगुरु बृहस्पति शुक्र की राशि वृषभ में और जब सूर्य देव मकर राशि में गोचर करते हैं, तब देवगुरु बृहस्पति की नवम दृष्टि सूर्य देव पर पड़ती है। यह काल अत्यंत पुण्यदायी होता है। जब देवगुरु बृहस्पति अपनी 12 राशियों का भ्रमण कर वापस वृषभ राशि में आते हैं, तब हर 12 साल में महाकुंभ का आयोजन होता है। इसी तरह जब बृहस्पति का वृषभ राशि में गोचर 12 बार पूरा हो जाता है।

यानी जब बृहस्पति के वृषभ राशि में गोचर के 12 चक्र पूरे हो जाते हैं, तो उस कुंभ को पूर्ण महाकुंभ कहा जाता है। जब देवासुर संग्राम हुआ था तो राक्षसों के गुरु शुक्र थे। इस बार वह उच्च स्थिति में राहु और केतु के साथ हैं। जबकि देवगुरु बृहस्पति शुक्र की राशि में हैं। देवासुर संग्राम के समय जो ग्रहों की स्थिति थी शुक्र दैत्य गुरु तथा बृहस्पति देवगुरु पूरी तरह से समुद्र मंथन के नायकों का दायित्व निभा रहे हैं।(साभार एजेंसी)

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