सूर्योदय से पहले देख सकते हैं अंतरिक्ष से आया ‘गंदा हिमगोला’

Uttarakhand News

(देहरादून)07दिसंबर,2025.

अंतरतारकीय आगंतुक, थ्रीआई एटलस धूमकेतु इस समय सौर मंडल से गुजर रहा है। यह सूर्योदय से पहले कुछ समय के लिए पूर्व दिशा में दिखाई देता है। थ्री आई का अर्थ यह है कि यह सौर मंडल में आया हुआ तीसरा ऐसा पिंड है जिसकी उत्पत्ति निश्चित रूप से सौर मंडल के बाहर हुई है।

जानकारी देते हुए एरीज के वैज्ञानिक डॉ. वीरेंद्र यादव ने बताया कि धूमकेतुओं को अक्सर गंदे हिमगोले कहा जाता है। क्योंकि वह पानी की बर्फ, जमी हुई गैसों, धूल और पत्थरों से बने होते हैं, जिनमें कार्बन की अधिक मात्रा वाले जैविक यौगिक भी होते हैं। इनका आकार लगभग 20 किलोमीटर तक हो सकता है और इनका आकार अनियमित होता है। बताया कि सौर मंडल के अधिकतर धूमकेतु लगभग 4.6 अरब वर्ष पहले सौर मंडल के साथ बने थे और उनमें आज भी वह पदार्थ उस प्राचीन अवस्था में मौजूद है जिससे सौर मंडल बना था। इसलिए वे खगोलविदों को सौर मंडल की उत्पत्ति समझने में मदद करते हैं। जब धूमकेतु सूर्य के पास आता है तो उसमें मौजूद जमी हुई बर्फ गर्म होकर सीधे गैस अवस्था में बदलने लगती है । इसे उर्ध्वपातन कहते हैं। यह गैस और धूल मिलकर धूमकेतु के चारों ओर कोमा नाम का धुंधला गुबार बनाती है।

कई धूमकेतुओं में सूर्य के प्रकाश का दबाव पीछे एक पूंछ भी बना देता है। इसलिए धूमकेतु को पुच्छल तारा भी कहते हैं। लेकिन थ्री आई एटलस 3I/ATLAS एक साधारण धूमकेतु नहीं है, यह सौर मंडल का हिस्सा नहीं है। इसकी कक्षा बताती है कि यह किसी दूसरे तारे की प्रणाली से आया है। अब तक ऐसे केवल तीन ही पिंड पाए गए हैं। यह धूमकेतु हमारे सौर मंडल से गुजरने के बाद हमेशा के लिए दूर अंतरिक्ष में चला जाएगा और फिर कभी वापस नहीं आएगा। इस धूमकेतु का वर्ष 2026 के वसंत तक धरती से दूरबीनों के जरिए अवलोकन किया जा सकता है, लेकिन समय के साथ यह धीरे-धीरे कम चमकदार होता जाएगा।

वैज्ञानिक डॉ.वीरेंद्र यादव ने बताया कि नैनीताल के मनोरा पीक स्थित आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) की 104 सेमी संपूर्णानंद दूरबीन से खगोलविदों का एक अंतर्राष्ट्रीय दल इस धूमकेतु का अध्ययन कर रहा है। धूमकेतु के कण सूर्य के प्रकाश को एक खास तरीके से बिखेरते हैं जिसे प्रकाश का ध्रुवीकरण कहा जाता है। बताया कि मनुष्य सामान्य प्रकाश और ध्रुवीकरण हुए प्रकाश में अंतर नहीं देख सकते। लेकिन पक्षियों और कीटों की कुछ प्रजातियाँ इसे देख पाते हैं। इसे मापने के लिए एरीज में एक विशेष कैमरा उपकरण का उपयोग किया जा रहा है, जो की भारत का एक मात्र ऐसा अवलोकन है।(साभार एजेंसी)

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