( नई दिल्ली )18सितम्बर,2025.
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने सतत विकास और युवा सशक्तिकरण के लिए शिक्षा की भूमिका को ‘रियल कैटेलिस्ट’ बताते हुए भारत के हरित परिवर्तन को रेखांकित किया. वे नई दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित सातवें अंतरराष्ट्रीय सतत शिक्षा सम्मेलन (ICSE) के उद्घाटन अवसर पर बोल रहे थे।
मोबियस फाउंडेशन ने यूनेस्को, UNEP, CEE, IUCN और अन्य वैश्विक साझेदारों के सहयोग से इस सम्मेलन का आयोजन किया।इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में दुनिया भर के 20 से अधिक देशों के राष्ट्रीय नीति निर्माता, शिक्षक, शिक्षा क्षेत्र के शोधकर्ता और सतत विकास के क्षेत्र में कार्यरत लोग एक साथ आए। सम्मेलन के 2025 एडिशन में हरित अर्थव्यवस्था के लिए हरित कौशल और युवा नेतृत्व पर ध्यान केंद्रित किया गया ताकि भारत की विशाल युवा आबादी को हरित नौकरियों की बढ़ती मांग के अनुरूप कार्यबल तैयार किया जा सके।
यादव का सामूहिक कार्रवाई का आह्वान:
अपने उद्घाटन भाषण में यादव ने पेरिस समझौते के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए फॉसिल फ्यूल इकोनॉमी से रेन्युबल एनर्जी सोर्स की ओर भारत के ट्रांजिशन को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा, “भारत फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता से रेन्युबल एनर्जी सोर्स की ओर बढ़ने के लिए अभूतपूर्व कदम उठा रहा है. पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होगी. ICSE जैसे मंच इस यात्रा में उत्प्रेरक का काम करते हैं.”
उन्होंने ग्रामीण भारत में बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने वाले मोबियस फाउंडेशन के ज्ञान कन्या शक्ति कार्यक्रम और जनसंख्या स्थिरीकरण पर केंद्रित प्रोजेक्ट आकार की भी सराहना की, जिसने 1.5 करोड़ से अधिक लोगों के जीवन में बदलाव लाया है. उन्होंने आगे कहा, “समावेशीता हरित अर्थव्यवस्था में सतत विकास की आधारशिला है. ये पहल सराहनीय हैं और एक लचीले, समतामूलक भविष्य के निर्माण के लिए आवश्यक हैं.”
सतत शिक्षा क्यों महत्वपूर्ण है?
डॉ राम बूझ ,जो सतत शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी व्यक्ति है. उन्होंने यूनेस्को में पर्यावरण विशेषज्ञ के रूप में भी कार्य किया. बूझ ने वैश्विक शिक्षा आंदोलन के लिए ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान किया. उन्होंने इसकी जड़ें 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में खोजीं, जिसने पर्यावरण शासन तंत्र की शुरुआत की, और सतत विकास के लिए संयुक्त राष्ट्र शिक्षा दशक (2005-2014) में, जिसने सततता को वैश्विक शिक्षण प्रणालियों के केंद्र में रखा।
बूझ ने ईटीवी भारत को बताया, “स्थायित्व तीन स्तंभों पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक में संतुलन बनाने के बारे में है.बहुत से लोग अभी भी इसे केवल एक पर्यावरणीय मुद्दे के रूप में देखते हैं.” बूझ ने आगे कहा,”जब तक हम प्रारंभिक बचपन से लेकर उच्च शिक्षा तक कोर्स और शिक्षण पद्धति में सततता को शामिल नहीं करते, हम संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की आशा नहीं कर सकते.”
बूझ ने इस बात पर जोर दिया कि सतत विकास लक्ष्य 4.7, जो स्पष्ट रूप से सतत विकास के लिए शिक्षा का आह्वान करता है, औपचारिक और अनौपचारिक शिक्षा प्रणालियों में सततता के सिद्धांतों को शामिल करने के लिए एक वैश्विक अधिदेश प्रदान करता है।
प्रैक्टिकल ऐजुकेशन के रूप में ग्रीन जॉब्स:
इस साल ICSE की थीम ने ग्रीन जॉब्स को चर्चा के केंद्र में रखा. बूझ ने तर्क दिया कि शिक्षा केवल टेक्स्टबुक तक सीमित न होकर अनुभवात्मक और बाहरी गतिविधियों पर केंद्रित होनी चाहिए. उन्होंने कहा, “बच्चों को पत्ते गिनकर और पानी की बर्बादी मापकर गणित सीखना चाहिए; उन्हें अपने आस-पास के आकाश, बादलों और बायोडायवर्सिटी का ओब्जर्वेशन करके विज्ञान सीखना चाहिए. इस प्रकार की शिक्षा जीवन कौशल और जिम्मेदारी की भावना विकसित करती है.”
उन्होंने रेन वॉटर हार्वेस्टिंग प्रोजेक्ट और रेजिडेंशियल यूनिवर्सिटी में वेस्ट रेडक्शन प्रोग्राम जैसे मॉडलों को व्यावहारिक स्थिरता शिक्षा के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया. इस तात्कालिकता पर प्रकाश डालते हुए, बूझ ने आंकड़ों का हवाला दिया कि 2030 तक दुनिया भर में पांच में से एक नौकरी ‘ग्रीन जॉब’ होगी और 2040 तक यह बढ़कर पांच में से दो हो सकती है. अकेले भारत का लक्ष्य 2030 तक रेन्यबल एनर्जी, सतत कृषि, वेस्ट मैनेजमेंट, गतिशीलता और प्रकृति-आधारित समाधानों के माध्यम से 5 करोड़ हरित नौकरियां पैदा करना है।
उन्होंने कहा, “अगर भारत नेट-जीरो टारगेट हासिल कर लेता है, तो 2070 तक हमें 50 करोड़ हरित रोजगार मिल सकते हैं।खेती अपने आप में सबसे बड़ा हरित रोजगार क्षेत्र है, और प्राकृतिक खेती और जलवायु-अनुकूल कृषि के विकास के साथ, ग्रामीण युवाओं के पास अपार अवसर हैं.”
रिसर्च एंड डेवलपमेंट और उद्योग की स्थिरता को बढ़ावा
CSIR की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ शैलजा ने इस बात पर जोर दिया कि अनुसंधान एवं विकास (D) को भी स्थिरता को अपने मूल में समाहित करना होगा. उन्होंने ईटीवी भारत को बताया, “पहले हम केवल तकनीकी-व्यावसायिक व्यवहार्यता पर ध्यान केंद्रित करते थे. आज, हर इनोवेशन को जीवन चक्र मूल्यांकन से गुजरना होगा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह नई पर्यावरणीय समस्याएं पैदा न करे.”
उन्होंने हरित रसायन विज्ञान के सिद्धांतों, विलायक के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट को मिनिमम करने और औद्योगिक प्रक्रियाओं में जीरो-लिक्विड डिस्चार्ज हासिल करने जैसे उदाहरणों का हवाला दिया, जो बताते हैं कि विज्ञान कैसे स्थिरता के साथ तालमेल बिठा सकता है।
शैलजा ने भारतीय स्कूलों में स्थिरता को एक मुख्य विषय के रूप में शामिल करने का भी समर्थन किया, “पाठ्यक्रम को पुनर्निर्देशित करने की आवश्यकता है. छात्रों को पर्यावरण, ऊर्जा और समाज के बारे में समग्र रूप से सोचना सीखना चाहिए, जिसे हम ‘हरित नौकरियां’ कहते हैं, वे ऐसी नौकरियां हैं, जहां इनोवेशन लोगों और ग्रह पर अपने प्रभाव के प्रति सचेत होता है.”
शिक्षा नीति और पाठ्यक्रम सुधार
शिक्षा क्षेत्र के नेताओं ने भी इस आह्वान को दोहराया. वर्ल्ड क्लास लर्निंग सिस्टम्स के सीईओ, एलेन एगबर्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 और आगामी एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तकों की ओर इशारा किया, जिनमें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण साक्षरता पर मॉड्यूल स्पष्ट रूप से शामिल हैं।
एगबर्ट ने कहा, “भारत कई देशों से आगे है क्योंकि दुनिया के 40 प्रतिशत देशों में अभी भी स्थिरता की अवधारणाओं को पाठ्यक्रम में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन सिर्फ़ नीति ही पर्याप्त नहीं है – हमें छात्रों के लिए स्थिरता को एक जीवंत अनुभव बनाने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण, संसाधनों और नवीन शिक्षण पद्धतियों की आवश्यकता है.”
व्यापक तस्वीर: हरित अर्थव्यवस्था के लिए कौशल
दिनभर वक्ताओं ने इस बात पर सहमति जताई कि हरित नौकरियां केवल नवीकरणीय ऊर्जा या अपशिष्ट प्रबंधन तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वास्तुकला, रसायन विज्ञान, गतिशीलता, आईटी और यहाँ तक कि एआई-संचालित समाधानों तक भी फैली हुई हैं।
बूझ ने कहा कि “लगभग हर क्षेत्र अब हरित हो रहा है”, हरित वास्तुकला और हरित गतिशीलता से लेकर हरित एआई तक, और इस माँग को पूरा करने के लिए भारत के युवाओं को तकनीकी और सॉफ्ट स्किल्स से लैस होना होगा।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि भारत, जिसकी 66 प्रतिशत आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है, अगर अपने कौशल अंतर को पाट ले, तो वैश्विक स्तर पर हरित कार्यबल का सबसे बड़ा योगदानकर्ता बन सकता है।
लिंक्डइन की 2023 ग्लोबल ग्रीन स्किल्स रिपोर्ट में पाया गया है कि स्थिरता कौशल की मांग पारंपरिक कौशल की तुलना में दोगुनी तेजी से बढ़ रही है।
केंद्र में युवा
ICSE 2025 की एक विशिष्ट विशेषता छात्र प्रतिनिधिमंडलों और युवा नवप्रवर्तकों की उपस्थिति थी, जिन्होंने जलवायु कार्रवाई, अपशिष्ट पुनर्चक्रण और जैव विविधता संरक्षण पर परियोजनाएं प्रस्तुत कीं. सत्रों में ‘करके सीखने’ को प्रोत्साहित किया गया और युवाओं को सामुदायिक स्तर पर परिवर्तन लाने में सक्षम ‘ग्रीन लीडर’ बनने के लिए मार्गदर्शन दिया गया.
सम्मेलन में एआई और ग्रीन रोजगार के अंतर्संबंध पर भी चर्चा हुई, जिसमें एनवीडिया के प्रतिनिधियों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे उन्नत सिमुलेशन और डेटा मॉडलिंग नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड और जलवायु पूर्वानुमान को अनुकूलित कर सकते हैं।
आगे की चुनौतियां:
आशावाद के बावजूद वक्ताओं ने शिक्षकों की सीमित तैयारी पाठ्यक्रम में सुधार के लिए धन की उपलब्धता और हरित परिवर्तन में ग्रामीण युवाओं को पीछे छोड़ देने के जोखिम जैसी चुनौतियों की ओर इशारा किया।
बूझ ने चेतावनी दी कि शहर-केंद्रित समाधानों से बचना होगा, “शहरी क्षेत्र पहले से ही पारिस्थितिक रूप से तनावग्रस्त हैं. असली संभावना ग्रामीण भारत में है, जहां अभी भी पारंपरिक ज्ञान प्रणालियां मौजूद हैं. हमें शहरों में ऐसी संरचनाएं बनानी होंगी जो ग्रामीण लचीलेपन की नकल करें, जल संचयन से लेकर शहरी खेती तक.”
हरित नौकरियां अब विशिष्ट नहीं बल्कि मुख्यधारा बन गई हैं और 2070 तक भारत का नेट-जीरो अर्थव्यवस्था बनने का मार्ग इस बात पर निर्भर करेगा कि वह अपने युवाओं को आज हरित कौशल से कितनी अच्छी तरह सुसज्जित करता है. डॉ. शैलजा ने कहा, “यह ग्रह हमारे हाथों में है. हमें इसकी रक्षा करनी होगी और शिक्षा ही वह जगह है, जहां से यह सुरक्षा शुरू होती है।”(साभार एजेंसी)
