एम्स ऋषिकेश में बिना चीर-फाड़ के सफल बाइपास सर्जरी संपन्न

Uttarakhand News

(देहरादून)10 मई,2025.

अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश ने मेडिकल क्षेत्र में एक नई मिसाल कायम की है। हृदय की कोरोनरी आर्टरी डिजीस का इलाज, जो अब तक छाती में चीरा लगाकर बायपास सर्जरी के जरिए होता था, अब एम्स के चिकित्सकों ने बिना चीर-फाड़ और हड्डी काटे सफलतापूर्वक कर दिखाया है। यह उपलब्धि 69 वर्षीय बुजुर्ग राम गोपाल के इलाज से जुड़ी है, जिनकी मिनिमली इनवेसिव टोटल आर्टीरियल कोरोनरी आर्टरी बायपास सर्जरी की गई। एम्स की कार्यकारी निदेशक प्रो. मीनू सिंह ने इस उपलब्धि को संस्थान की प्रगति का प्रतीक बताते हुए सर्जरी टीम की सराहना की।

सहारनपुर निवासी राम गोपाल 26 मार्च 2025 को स्वास्थ्य समस्याओं के साथ एम्स पहुंचे थे। 21 अप्रैल को उनकी एंजियोग्राफी में कोरोनरी आर्टरी डिजीस का पता चला, जिसमें हृदय की धमनियों में रुकावट थी। चिकित्सकों ने तत्काल बायपास सर्जरी की सलाह दी। 30 अप्रैल को सीटीवीएस विभाग की टीम ने चार घंटे की जटिल सर्जरी को अंजाम दिया। सर्जरी के कुछ घंटों बाद होश में आए राम गोपाल को यकीन नहीं हुआ कि उनकी छाती की हड्डी काटे बिना सर्जरी हो गई। उन्होंने इसे चमत्कार बताते हुए कहा, “मैं अब बेहतर महसूस कर रहा हूं।” सर्जरी के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

सर्जरी टीम के प्रमुख शल्य चिकित्सक डॉ. राजा लाहिड़ी ने बताया कि यह एम्स में पहली मिनिमली इनवेसिव बायपास सर्जरी थी। कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. बरून कुमार की एंजियोग्राफी में ब्लॉकेज की पुष्टि के बाद यह निर्णय लिया गया। सीटीवीएस विभागाध्यक्ष डॉ. अंशुमान दरबारी ने बताया कि रोगी की उम्र के कारण सर्जरी जोखिम भरी थी, लेकिन टीम वर्क ने इसे सफल बनाया। सर्जरी में डॉ. अजय कुमार (एनेस्थेटिक), डॉ. शुभम रावत, डॉ. पूजा, और डॉ. जूही शामिल थे।

कोरोनरी आर्टरी डिजीस में हृदय की मांसपेशियों तक रक्त पहुंचाने वाली धमनियों में रुकावट आती है, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है। इसके लक्षणों में तेज चलने या चढ़ाई चढ़ते समय सीने में दर्द, भारीपन, घबराहट, सांस फूलना, तेज धड़कन और थकान शामिल हैं। सामान्य बायपास सर्जरी में छाती खोलकर हड्डी काटी जाती है, लेकिन इस तकनीक में ऐसा नहीं हुआ। डॉ. दरबारी ने बताया कि एम्स में अब तक 250 से अधिक बायपास सर्जरी हो चुकी हैं, लेकिन यह पहली बार था जब बिना हड्डी काटे सर्जरी की गई।

यह तकनीक न केवल मरीजों के लिए कम दर्दनाक है, बल्कि रिकवरी भी तेज होती है। राम गोपाल जैसे बुजुर्ग मरीजों के लिए यह तकनीक वरदान साबित हो सकती है। एम्स की इस उपलब्धि ने चिकित्सा जगत में नई उम्मीद जगाई है, खासकर उन मरीजों के लिए जो जटिल सर्जरी से डरते हैं। यह नवाचार भविष्य में हृदय रोगियों के इलाज में क्रांति ला सकता है

Share it

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *