(प्रयागराज UP)14जनवरी,2025
नख से शिख तक भभूत। जटाजूट की वेणी, आंखों में सूरमा, हाथों में चिमटा, होठों पर सांब सदाशिव का नाम। भभूत लपेटे, दिगंबर, हाथ में डमरू, त्रिशूल और कमंडल के साथ ही अवधूत की धुन में झूमते हुए नागा त्रिवेणी के तट पर पहले अमृत स्नान के लिए प्रस्थान करेंगे। 13 अखाड़ों के साधु 21 श्रृंगार के साथ अमृत स्नान की पहली डुबकी लगाई।
महाकुंभ के पहले अमृत स्नान में अपने इष्ट महादेव की तरह ही नागा साधुओं का शृंगार भी देश भर के श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र होगा। दीक्षा की वेशभूषा दिगंबर स्वरूप में ही नागा साधु अमृत स्नान से पहले तन-मन को 21 श्रृंगार से सजाया।
त्रिवेणी के तट पर महाकुंभ का पहला अमृत स्नान पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र में आरंभ हो रहा है। प्रथम पूज्य भगवान गणेश का पूजन करने के बाद नागा साधु आदियोगी शिव के स्वरूप में खुद को सजाएंगे।
शरीर में भस्म लगाने के बाद चंदन, पांव में चांदी के कड़े, पंचकेश यानी जटा को पांच बार घुमाकर सिर में लपेटेंगे, रोली का लेप, अंगूठी, फूलों की माला, हाथों में चिमटा, डमरू, कमंडल, माथे पर तिलक, आंखों में सूरमा, लंगोट, हाथों व पैरों में कड़ा और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करने के बाद नागा साधु प्रस्थान करेंगे।
महानिर्वाणी अखाड़े के शंकरपुरी महाराज ने बताया कि हिंदू धर्म में सुहागिन 16 शृंगार करती हैं, लेकिन नागा साधु अमृत स्नान के लिए 21 शृंगार करते हैं। इसमें शरीर के साथ ही मन और वचन का भी शृंगार शामिल होता है। इसके साथ ही सर्वमंगल की कामना भी होती है।
इस शृंगार का मतलब दिखावा करना नहीं होता है। नागा साधु इसे अंदर तक महसूस भी करते हैं। महादेव को प्रसन्न करने के लिए 21 शृंगार के साथ ही नागा साधु संगम में अमृत स्नान की डुबकी लगाए।मेले में आसन लगाए नागा साधु खड़ेश्वरी बाबा बताते हैं, नागा बनने के बाद साधना और तपस्या बेहद जरूरी है। स्नान से पहले नागा साधु खुद को सजाते हैं। इसमें तन के साथ ही मन को भी सजाना जरूरी होता है।
इष्टदेव महादेव से जुड़ा है श्रृंगार:
महानिर्वाणी अखाड़े और अन्नपूर्णा मंदिर के महंत शंकर पुरी ने बताया कि सिर से नख तक शृंगार के साथ ही मन का भी शृंगार जरूरी होता है। नागा साधु जो भी शरीर पर शृंगार करते हैं वह उनके इष्टदेव महादेव से जुड़ा हुआ है।
भभूत : क्षणभंगुर जीवन की सत्यता का आभास कराती है भभूत। नागा साधु भभूत को सबसे पहले अपने शरीर पर मलते हैं।
चंदन : हलाहल का पान करने वाले भगवान शिव को चंदन अर्पित किया जाता है। नागा साधु भी हाथ, माथे और गले में चंदन का लेप लगाते हैं।
रुद्राक्ष : रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है। नागा साधु सिर, गले और बाजुओं में रुद्राक्ष की माला धारण करते हैं।
तिलक : माथे पर लंबा तिलक भक्ति का प्रतीक होता है।
सूरमा : नागा साधु आंखों का शृंगार सूरमा से करते हैं।
कड़ा : नागा साधु हाथों व पैरों में कड़ा पीतल, तांबें, सोने या चांदी के अलावा लोहे का कड़ा पहनते हैं। मान्यता है कि भगवान शिव भी पैरों में कड़ा धारण करते थे।
चिमटा : चिमटा एक तरह से नागा साधुओं का अस्त्र भी माना जाता है। नागा साधु हमेशा हाथ में चिमटा रखते हैं।
डमरू : भगवान शिव का सबसे प्रिय वाद्य डमरू भी नागा साधुओं के शृंगार का हिस्सा है।
कमंडल : जल लेकर चलने के लिए नागा साधु अपने साथ कमंडल भी धारण करते हैं।
जटा : नागा साधुओं की जटाएं भी एकदम अनोखी होती हैं। प्राकृतिक तरीके से गुथी हुई जटाओं को पांच बार लपेटकर पंचकेश शृंगार किया जाता है।
लंगोट : भगवा रंग की लंगोट को नागा साधु धारण करते हैं।
अंगूठी : नागा साधु हाथों में कई प्रकार की अंगूठियां पहनते हैं। हर एक अंगूठी किसी न किसी बात का प्रतीक होती है।
रोली : नागा साधु अपने माथे पर भभूत के अलावा रोली का लेप भी लगाते हैं।
कुंडल : नागा साधु कानों में चांदी या सोने के बड़े-बड़े कुंडल सूर्य और चंद्रमा के प्रतीक माने जाते हैं।
माला : नागा साधुओं की कमर में माला भी उनके शृंगार का हिस्सा होती है।
प्रवचन : बेहतर प्रवचन व आशीर्वचन देना भी शृंगार का हिस्सा होता है।
मधुर वाणी : मधुर वाणी भी नागा साधुओं के शृंगार का हिस्सा है।
साधना : सर्वमंगल की कामना से नागा साधु जो साधना करते हैं, वह सबसे महत्वपूर्ण शृंगार है।
सेवा : नागा साधुओं में सेवा का भाव भी एक शृंगार होता है जो बेहद जरूरी है(साभार एजेंसी)